चारण कौन थे ?क्या थे ?


चारण री बाता

चारण क्या थे?कौन थे ? (मध्य कालीन युग)

चारण


अगर हम इतिहास मे एक द्रष्टि डाले तो पायेंगे की राजपूताना मे चारणो का इतिहास मे सदेव ही इतीहासीक योगदान रहा है । ये बहोत से राजघराणे के स्तम्भ रहे है । इन्हे समय समय पर अपनी वीरता एवम शौर्य के फल स्वरूप जागीरे प्राप्त हुई है ।

चारण राज्य मे राजकवि ,उपदेशक एवम पथप्रद्शक होते थे । वह राजा के साथ युध्ध भूमि मे जाते थे एवम युध्ध मे राजा को उचित सलाह और धेर्य देते ,और अपनी वीरता युध्ध भूमि मे दिखाते थे ।वह राज्य के दार्शनिक ,राजकवि,रणभूमि के योद्धा और एक मित्र के रुप मे राज्य और राजा को सहयोग करते थे ,और राज्य की राजनीति मे भी उनका बड़ा योगदान रेहता था ।राजपूताना के राज्यों मे चारण एक सर्वश्रेष्ठ,प्रभावशाली एवम महत्वपूर्ण व्यक्ति होते थे ।

जीवन स्तर : मध्य काल मे राजपूताना के चारण सभी प्रकार से सर्वश्रेष्ठ थे । राजघराने के राजकवि(मंत्री) और जागीरदार थे । उनके पास जागीरे थी उनसे जीवनयापन होता था ।

>राजपूताना से मिले कुरब कायदा -समान

चारणो को समय समय पर उनके शौर्यपूर्ण कार्य एवम बलिदान के एवज मे सन्न्मानीत किया जाता था ।जिनका विवरण इस प्रकार है :

1} लाख पसाव, 2} करोड़ पसाव ,3} उठण रो कुरब ,4} बेठण रो कुरब, 5}दोवडी ताजीम ,6} पत्र मे सोना 7}ठाकुर 8}जागीरदार

ચારણ ગઢવી


दरबार मे चारण के बेठ्ने का स्थान छठा था ,सातवां स्थान राजपुरोहित का था । ये दो जातियाँ दोवडी ताजीम सरदारों मे ओहदेदार गिने जाते थे । चारण को दरबार मे आने जाने पर राज दरबार एवम राजकवि पदवी दोनो से अभी वादन होता था ।

चारण के कार्य :चारण राजा के प्रतिनिधि होते थे । चारण राजा को क़दम क़दम पर कार्य मे सहयोग करता था ।वह युद्ध मे बराबर भाग लेता और युध्धभूमि मे सबसे आगे खडा होता एवम शौर्य गान और उत्साह से सेना व राजा को उत्साही करता और युद्ध भूमि मे अपनी वीरता दिखाते युद्ध करते । वह राजकवि के अतिरिक्त एक वीरयौद्धा और स्पष्टवक्ता होते थे । राजघराने की सुरक्षा उनका कर्तव्य था,राज्य के कोई आदेश अध्यादेश उनकी सहमती से होता था ।संकट समय पर राजपूत और राजपूत स्त्रीया भी चारण के स्थान को सुरक्षित मान कर पनाह लेते थे ।

चारण कुल मे कई सारी देवियां हुई जो राजपूतो की कुलदेवीया है,ऐसी कोई राजपूत साख नही होंगी जिनकी कुलदेवी चारण न हो ।

देवलोक से आने से और कई देवियां के जन्म से चारणो को (देवकुल) देवीपुत्र भी कहा जाता है । चारण कुल मे (काछेला समुदाय) मे देवियां हुई जो राजपूतों को राज्य प्राप्त करने मे मददरुप बने और राजपरिवार की कुलदेवियां हुई । और चारणो मे बहोत राजकवि ,वीरयोद्धा,स्पष्ट वक्ता हुए जो राजघराने के आधरस्तम्भ की तरह रहे । चारण का राजपूत से अटूट सम्बंध रहा है ।

अभीवादन :चारण अभिवादन "जय माताजी"से करते है,राजपूतो को जय माताजी कर अभीवादन करना चारण ने सिखाया है ।

>ठिकाणा व जागीरी: स्थिति - पुरातन समय में तो राजपुरोहित और चारण राज्य के सर्वोच्च एवं सर्वश्रेष्ठ अधिकारी होते थे । मध्यकाल में युद्धो में भाग लेने, वीरगति पाने तथा उत्कृष्ठ एवं शौर्य पूर्ण कार्य कर मातृभूमि व स्वामिभक्ति निभाने वालो को अलग-अलग प्रकार की जागीर दी जाती थी । इसमें चारण ,राजपूत व राजपुरोहित ये तीन जातियाँ मुख्य थी । प्रमुख ताजीमें निम्न थी -


1. दोवड़ी ताजीम

2. एकवड़ी ताजीम

3. आडा शासण जागीर

 (क) इडाणी परदे वाले

 (ख) बिना इडाणी परदे वाले

4. भोमिया डोलीदार

 (क) राजपूतो में भोमिया कहलाते

(ख) चारण एवं राजपुरोहितो में डोलीदार कहलाते ।


राजपूत साधारण जागीरदार, पर चारण व राजपुरोहित को सांसण (शुल्क माफ) जागदीरदार कहलाते थे।


रस्म रिवाज -

समस्त रस्मोरिवाज विवाह, गर्मी, तीज-त्यौहार, रहन-सहन, पहनावा इत्यादि राजपूतो व चारणो के समान ही है।


वर्तमान स्थिति :बदलते युग के थपेड़ो के बिच चारण की गौरवगाथा मात्र ऐतिहासिक घटनाओ पर रह गयी है । अल्प संख्यक समाज है राजस्थान ,गुजरात कुछ भाग मे,मध्यप्रदेश के कुछ भाग मे चारणो की संख्या है ।सरकारी नोकरी मे चारण को जाना ज्यादा पसंद है ।कुछ चारण निजी व्यवसाय एवम खेती पर निर्भर है । देश की तीनो सशस्त्र सेना एवम सुरक्षा कर्मियों आदि नोकरी करनी ज्यादा पसंद करते है । देश भक्त एवम वफादार है । आज भी कुछ कुछ चारण काव्य रचते है ।

उपसंहार - स्पष्ट है कि पुरातन एवं मध्यकाल में चारणो, राजपुरोहितो एवं राजपूतो का चोलीदामन का प्रगाढ़ रिश्ता रहा है। सांस्कृति दृष्टि (रीति-रिवाजो) से ये कभी भिन्न नहीं हो सकते । एक दूसरे के अभिन्न अंग की तरह है। इतिहास साक्षी है - पुरातन समय में चारणों ने समय-समय पर राजपूतो को कर्तव्यपालन हेतु उत्साहित किया । उन्होने काव्य में विड़द का धन्यवाद दिया एवं त्रुटियों पर राजाओं को मुंह पर सत्य सुनाकर पुनः मर्यादा एवं कर्तव्यपालन का बोध कराया । रणभूमि मे शौर्यता और वीरता दिखा कर कई युध्ध मे जीत हासिल की । किन्तु समय के दबले करवटों के पश्चात् देश आजाद होने के बाद ऐसा कुछ नहीं रहा एवं धीरे-धीरे मिटता गया ।

संदर्भ :

⚫प्राचीन भारतीय इतिहास -dr. वी.एस.भार्गव

⚫भारतीय संस्क्रुति का विकास क्रम-एम.एल माण्डोत

⚫राजपुरोहित जाती का का इतिहास -प्रहलादसिंह राजपुरोहित

⚫चारण की अस्मिता -लक्ष्मणसिंह पिंगलशी चारण

Charan gadhvi


उपरोक्त पुस्तकों का निचोड़ कर के एवम अपनी मौलिकता और इससे अतिरिक्त अन्य शब्द सामग्री का भी प्रयोग किया है ।आशा है समाज के प्रत्येक वर्ग को और अन्य समाज को भी चारण ज्ञाति की रुचिकर एवं नई जानकारी प्राप्त होगी ।

          *आभर*

     *"जय माताजी री"*

*कुँ.जीगरसिंह चारण (सिंहढायच)*

*ठी.थेरासणा (ईडर)*