करती मदतों  करनला भल भल विवधों भात। 
सदा रेवे जो शरणला  पल पल खुशियां पात।। 

करम धरम सब करनला परतख मेटे पाप। 
जो जन शरणे जात है करनल संकट काप।। 

सब कुछ तूं ही सगती तूं ही मात अर तात।
 पुकारे राजन प्रेम सूं पांण जोड़ परभात।। 
(कवि राजन झणकली)  

भान बेभानमां मात तुजने रटया विसारी बापनुं नाम दीधू...  
 चारणों जन्मथी पक्षपाती बनी,शरण जननी तणुं ऐक लीधुं..  
 ते लदावी घणां लाड मोटा कर्या, प्रथम सत्काव्यना दूध पायां...
   खोलले खेलव्या बालने,आज तरछोडमां जोगमाया...       
रास रमती हती अमतणी जीभ पर, झण्ण पड नुपुर झनकार थाता  
 सचरने एचर सौ मुग्ध बनाता हता, ताल दई संगमां गीत गाता.   
नर नराधीश जगदीश रीझ्या हता, अम तणा ऐ ज झरणा सुकाया..   
देश भक्ति तणा रण मरण मोक्षना, पाठ क्षत्रीने अधरा पढाव्या...    
   रंक रक्षक तणा दुष्ट भक्षण तणां, आकरा पाण तेगे चडाव्या...  
 लग्न वरमाल काढी लडाव्या हता, (अमे) आज निर्वीर्यना गुण गाया.      
 आत्म अर्पण तणा प्रथम भुव भारते, चारणे कंठथी सुर छेडया...   
लाखना लोहीनी धार अटकाववा, चारणे आपना लोही रेडया.  
 सत्य आग्रह तणा उपासक आदिथी, स्वतंतर जीवनना गुण गाया..     
  सत तणा स्वांग रण भोम, रंगमेलमां, पहेरीने असताना दांत झर्या.  
 अम्बिका तुज तणा इ ज पुत्रो अमे, मात छोडे नहीं तोय माया..   
जगत सेवा तणा काव्य ललकारीये, झुपडे झुपडे गीत गईऐ...   
काग खेडुतनी खेडी धरणी परे, में र वारसादनी लाव माया ....   

रचियता भक्त कवि श्री दुलाभर्या काग (भगत बापू)