पाकिस्तान की जेल में बंद मुजीब व दूसरे नेताओं पर पाकिस्तान के सैन्य अदालत में मुकदमा चलाया गया था। इन मुकदमों के तहत शेख मुजीब व उनके साथियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। यह सूचना इंदिरा के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं था। जैसे ही तब के रॉ प्रमुख राम नाथ काव ने इंदिरा को इस बारे में जानकारी दी। इंदिरा ने मन ही मन शेख मुजीब को आजाद कराकर बंगाली मुसलमानों के आवाज को बुलंद किए रहने के लिए तय किया। कहा जाता है कि शेख मुजीब को फांसी के बाद दफन करने के लिए जेल में पाकिस्तान ने कब्र भी बना लिया था।

भारत के 1500 वीर जवानों ने बंग्लादेसी लोगों के स्वाभीमान के लिए अपने सीने में गोलियां खाईं। वह शहीद हुए लेकिन उन्होंने करीब 93000 पाकिस्तानी सेना को  आत्म-समर्पण करने व झुकने के लिए मजबूर कर दिया। 

 बात  3 दिसंबर 1971 की है। जब भारत व पश्चिमी पाकिस्तान के बीच पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के साथ हो रहे अन्याय को लेकर युद्ध शुरू हुआ था। यह युद्ध 16 दिसंबर, 1971 को भारत-पाकिस्तान के बीच 13 दिन चला। इस युद्ध के दौरान भारत के 1500 सिपाही शहीद हो गए। इंदिरा गांधी ने जब सेनाध्यक्ष को बुलाकर पाकिस्तानी सेना को जवाब देने को कहा था, तो भारतीय सेना ने इसकी तैयारी के लिए कुछ समय मांगा था।  

 दुनिया भर में भारतीय फौज की वाहवाही होने लगी। पाकिस्तान अमेरिका व दूसरे देशों के आगे इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए गिड़गिड़ाने लगा था। हालांकि, कई देशों ने इस मामले में पाकिस्तान का साथ भी दिया। लेकिन, हिंदुस्तान की सत्ता इंदिरा गांधी के हाथों में थी। इंदिरा के मजबूत इरादे के सामने किसी का एक नहीं चला। 

 इस युद्ध की समाप्ति के आठ महीने के बाद दोनों देशों ने शिमला समझौते पर दस्तखत किए जिसमें भारत ने युद्ध के दौरान हिरासत में लिए गए सभी 93,000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा करने का फैसला किया। इसके बदले भारत ने पाक के सामने अपनी कई मांग रखी। इन्ही मांगों के तहत बंग्लादेशी नेताओं की सुरक्षीत वापसी व बंग्लादेश नामक एक नए देश का उदय हुआ था।