💐 *चारणकवि पद्मश्री कागबापु द्वारा रचीत हिंद की राजपुतानीयां थी(रेखता छंद)* 💐

रंगम्हेलमें बानिंया बो'त रहे,एक बोल सुनें नहिं बानिंयाका...
दरबारमें गुनिका नाच नचे,नहिं तान देखे गुनकानिंयाका...
नरनार प्रजा मिलि पावनमें,नहिं पाव पेसाराय ठानियांका...
जग जिनका जीवन पाठ पढे,सोइ जीवन राजपुतानिंयाका...१

व्यभीचार करे दरबार कदी,घर ब्हार करी धमकावती थीं...
फिटकार सुनावती जींदगीमें,फिर नाथ कही न बुलावती थीं...
पति जारको आप रिझावती ना,जगतारक राम रिझावती थी...
एसा पावन जीवन था जीनका,सोइ हिंद की राजपुतानिंया थीं...२

अरि फोज चडे रणहाक पडे,रजपुत चडे राजधानिंयाका...
तलवार वडे सनमुख लडे,केते शीश दडेय जुवानीयांका...
रण पूत मरे मुख गान करे,पय थान भरे अभिमानिंयाका...
बेटा जुद्ध तजे,सुणी प्राण तजे,सोइ जीवन राजपुतानिंयाका...३

रण तात मरे सुत भ्रात मरे,निज नाथ मरे नहीं राेवती थी...
सब घायल फोज को एक करी,तरवार धरी रण झूझती थी...
समशेर झडी शिर झीलती थी,अरि फोज का पाव हठावती थी...
कवि वृंदको गीत गवावती थी,सोइ हिंदकी राजपूतानिंया थी...४

निज पुत सोते बाल पालने में,रघुनाथ के गायन गावती थी...
कही ज्ञान गीता समजावती थी,भय मोत का साथ भुलावती थी...
तलवार धरी कर झुझने का,रन दाव का पाठ पढावती थी...
घर अंबीका थी,रन कालिका थी,सोइ हिंद की राजपुतानिंया थी...५

अभियागत द्वारपें देखतीं वे,निज हाथसे थाल बनावती थीं...
मिजमानको भाजन भेद बिना,निज पूत समान जिमावती थी...
सनमान करी फिर दान करी,चित लोभका लंछन मानती थी...
अपमानती थी मनमोह बडा,सोइ हिंद की राजपुतानिंया थी...६

नृप ताजमें जीनकी लाज बडी,राजकाजमें ध्यान लगावती थी...
प्रजा सुख रहे,नव भुख रहे,ऐसा बोल सदा फरमावती थी...
सब रैयत की फरीयाद सुनी,फरीयाद की दाद दिलावती थी...
निज रीत के गीत गुंजावती थी,सोइ हिंद की राजपुतानीयां थी...७

रण काज बडे रजपुत चडे,और द्वार खडे मन सोचती थी...
मेरा मोह बडा,इसी काज खडा,फीर शीश दडा जीम काटती थी...
मन शेश लटा सम केश पटा,पतिदेवको हार पे'नावती थी...
जमदूतनीं थी,अबधुतनी थी,सोइ हिंद की राजपुतानीयां थी...८

पतिदेवको मातको तातको तो,निज मातपिता सम मानती थी...
छोटे भ्रात के हितकी मात समी,पितराइयोंको पांखमे राखती थी...
दासीदासपे मातका रोफ रखे,उसे घातकी बात न दाखती थी...
नहीं भोगनी थी,जोगजोगनी थी,सोइ हिंदकी राजपुतानिंया थी...९

आज विरकी,धीरकी खोट पडी,पडी खोट उदारन दानियांकी...
प्रजापाल दयालकी खोट पडी,पडी खोट दिसे मतिवानीयांकी...
सब खोटका कारन 'काग' कहे,पडी खोट वे राजपुतानींया की...१०


🌹 *रचना -- चारण कवि पद्मश्री कागबापु* 🌹


🌷 *टाइपिंग -- राम बी. गढवी* 🌷
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👏🏼 *आ रचना कागवाणी मांथी टाइप करेल छे भुलचुक सुधारीने वांचवी* 👏🏼
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💐 *वंदे सोनल मातरमं* 💐