।। नमामि चाळकनैच ।।

                       ।। दोहा ।।

आंगण मामड़ अवतरे, सात सरूप सतैज ।
अम्ब अमामी आवड़ा, नामी चाळकनैच ।

समन्द हाकड़ौ सौखियो, हेक हथळ बिन जैज ।
जाहर जस कीनो जगत, नामी चाळकनैच ।

तखत तुंही मंढ़ तैमड़े, (माँ) दीपत तूं डूंगरेच ।
निरमळ थांरो नाम माँ, नामी चाळकनैच ।

(श्री माँ चाळकनैच विनय इक्कीसी सूं उद्धृत )
            अन्तस री अरदास पुस्तक सू 

       विनीत:- जयसिंह सिंढ़ायच मण्डा
                         राजसमन्द