आवड़ रो अवतार मां, धिन धिन आ मरुभौम
रूप निहारण राज रो, आय धरा पर सोम

सागर दान तात बडभागी, धापु मां हर्षाय
जग जननी गोद्यां में खेलै, मनड़ै मोद समाय

 सो'वै खूब कसूमल कूर्तो, सिर पर पेच विशेष
राजकुंवर सा लगैं अन्नदाता, धर मर्दानो भेष

बौना शब्द अज्ञान हृदय में, पर श्रद्धा मात अनंत
हाथ हेत रो राख्या म्हांपै, मां जीवन पर्यंत
           प्रहलाद सिंह कविया प्रांजल
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