रचना - महादान जी भादरेश
सेवग री कर साय, अरज सुणंताँ ईशरी।
उदगे करनल आय,विगन हर वीस हथी।।१।।
अबखी वेळा आज,वेगी आय वीस हथी।
करण सिध्ध मम काज, मैर करै मातेश्वरी।।२।।
मेहाई मो माय,कष्ट मेटणी करनला।
अरज सुणंताँ आय,अरियां दळवा ईशरी।।३।।
मत भूले तू माय, साय करणी सेवग री।
धरे त्रीशूल धाय,वैरी वींधण वीस हथि।।४।।
तरणी तैही तार,सहाय की जिम साहरी।
त्यूंही अज मम तार,पार करे परमेश्वरी।।५।।
शेखै री कर साय,जिम छुडावियो जेल सूं।
उण भांती ही आय , सहाय करजे सुत्त री।।६।।
तन अरियन को त्रास,व्याधि मेटण वीस हथी।
दाखूं तोरो दास, रोग हरे राजेश्वरी।।७।।
दुरमति करजे दूर,सदमति समापे सगती।
भगती सूं भरपूर, कुशल राखजे करनला।।८।।
साचां री कर साय,कूड़ा कापै करनला ।
अबखी वेळा आय,सहाय करै सचाँ तणी।।९।।
करणी मैर करंत,सुख संपत दीजे सकत।
कल्याण मम करंत ,चिंता मेटे चारणी।।१०।।
वुर वँछां रो विनाश,करजे माता करनला ।
दाखै 'मधुकवि' दास,वळे न पनपे वुरवँछा।।११।।
टंकण
जगदीश बीठू सींथल
9413151131
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