*अरुण खेत्रपाल*
"प्रारम्भिक जीवन"
अरुण खेतपाल का जन्म 14 अक्टूबर 1950 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल (बाद में ब्रिगेडियर) एम एल खेतरपाल भारतीय सेना में कोर ऑफ इंजीनियर्स अधिकारी थे। लॉरेंस स्कूल सनवार में जाने के बाद उन्होंने खुद को एक सक्षम छात्र और खिलाड़ी के रूप में प्रस्तुत किया था। खेतरपाल जून 1967 में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में शामिल हुए। वह फॉक्सट्रॉट स्क्वाड्रन से संबंधित थे जहां वह 38वें पाठ्यक्रम के स्क्वाड्रन कैडेट कैप्टन थे। उनकी एनडीए संख्या 7498/एफ/38 थी वह बाद में भारतीय सैन्य अकादमी में शामिल हो गए। 13 जून 1971 में खेतपाल को 17 पूना हार्स में नियुक्त किया गया था।
"सैन्य वृत्ति"
खेतरपाल ने अपना सैन्य जीवन 13 जून 1971 को शुरू किया था और 16 दिसम्बर 1971 को भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान 17 पूना हार्स को भारतीय सेना के 47वीं इन्फैन्ट्री ब्रिगेड की कमान के अंतर्गत नियुक्त किया गया था। संघर्ष की अवधि के दौरान 47वीं ब्रिगेड शकगढ़ सेक्टर में ही तैनात थी। 6 माह के अल्प सैन्य जीवन में ही इन्होने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।
"सर्वोच्च बलिदान"
थोड़ा सा अलग सा नाम था उनके सेंचूरियन टैंक का... फ़ामागुस्ता- साइप्रस के एक बंदरगाह के नाम पर. टैंक के अंदर तंग सी जगह में बैठे सेकेंड लेफ़्टिनेंट अरुण खेत्रपाल अपने सामने छितराए पड़े, जलते हुए कुछ पाकिस्तानी टैंकों को निहार रहे हैं. उनमें से ज़्यादातर आगे बढ़ने के काबिल नहीं हैं।
अरुण के खुद के टैंक में आग लगी हुई है, लेकिन अभी भी उनकी फ़ायर करने की क्षमता बरक़रार है. खेत्रपाल के गले की नस तेज़ी से फड़क रही है. वो सोच रहे हैं कि अगर वो 75 गज़ की दूरी पर आते हुए टैंक पर सही निशाना लगा लेते हैं तो उनके द्वारा ध्वस्त किए हुए टैंकों की संख्या पाँच हो जाएगी।
उन्होंने अपना रेडियो सेट ऑफ़ कर दिया है क्योंकि पीछे से उनका कमांडर उन्हें निर्देश दे रहा है, 'अरुण वापस लौटो'. तभी अचानक सीटी की आवाज़ करता हुआ एक गोला खेत्रपाल के टैंक के कपोला को भेदता हुआ निकल जाता है. उस सेकेंड के सौंवे हिस्से में उन्हें ये एहसास नहीं होता कि उसने उनके सीने को फाड़ दिया है।
ख़ून से लथपथ अरुण खेत्रपाल अपने गनर नत्थू सिंह से फुसफुसा कर सिर्फ ये कह पाते हैं, 'मैं बाहर नहीं आ पाऊंगा.' नत्थू की पूरी कोशिश होती है कि वो अरुण को जलते टैंक से बाहर निकाल पाएं. कुछ ही सेकेंडों में अरुण का शरीर नीचे की तरफ़ लुढ़कता है. उनके पेट का ज़ख्म इतना गहरा है कि अरुण की आंतें बाहर निकल आई हैं।
समय है दस बज कर पंद्रह मिनट. तारीख 16 दिसंबर, 1971. अपनी अंतिम सांस लेते हुए अरुण खेत्रपाल की उम्र है सिर्फ़ 21 वर्ष. छह फ़ीट दो इंच लंबे अरुण क्षेत्रपाल एक सैनिक परिवार से आते थे. उनके दादा पहले विश्व युद्ध और पिता दूसरे विश्व युद्ध और 1965 के युद्ध में लड़ चुके थे. उनमें बचपन से ही नेतृत्व और ज़िम्मेदारी के गुण थे।
ओर इस तरह महज़२१ साल की अल्प आयु में अरुण खेत्रपालने अपना सर्वस्व मा भारती के चरणों में न्योछावर कर दिया।
"सर्वोच्च सम्मान"
सेकेण्ड लेफ्टिनेन्ट अरुण खेतरपाल के अद्वितीय बलिदान व समर्पण के लिए इन्हें भारत सरकार द्वारा गणतंत्र दिवस 1972 को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया जो 16 दिसम्बर 1971 से प्रभावी माना गया।
0 Comments
Post a Comment