.          *भकतवर ईशरदाशजी कृत*
  
.          *गीत - जात सपाखरूं (संपखरो)*

कांई नहोता पवन्न पाणी जळां थळां अहंकार ,
वेद वाणी मंत्र जंत्र नहोता विवेक;
धर्म  कर्म चंद्र सूर नहोता आकाश धरा,
या अल्ला ईल्लला अल्ला हुता आपें ऐक.१

बुद्धि थकी करत्तार शक्ति निपाई बीजी,
रिद्धि सिद्धि नवे नीद्धि दिना रंग रूप;
स्वारथी बण्या नां प्रभु प्रमारथी बण्या शाम,
सूजे नाहीं दूजो कोई जोवंता सरूप.२

त्रिगुणी चलाई माया खूंटही बणाया तीन,
ऐवा तीन लोक मांही तुहारो आधार;
भ्रम्मा विष्णु तमे माहेशरा ईश तमे भारे,
तीन तीन तीन देव किया करत्तार.३

.   आ "गीत " संबंधे सांभळवामां आवेल छे के, स्त्री ने प्रसुती समय बाळकनो प्रसन न थतो होय तो,  गमे ते ऐक माणसे स्नान करी, शुध्द वस्त्र पहेरी, ऐक पात्रमां चोखुं पाणी लई ,श्री विष्णु भगवाननुं स्मरण करी, आ गीत बोलवुं . पछी ते पात्रनुं पाणी आपवुं. ते पाणी पीडाती बाईने पावाथी तरत बाळकनो प्रसन थाय छे .अमे खात्री करतां सीध्द थयुं छे.


.                               ली. शंकरदान कवि.

  *📖पुस्तक = चारण महात्मा भक्तवर इशरदासजी प्रणीत *श्री हरिरस* *(गुजराती - सटीक)💐*

      *🙏🏻भुलचुक सुधारीने वांचवी🙏🏻*

*💐टाईपिंग = चारण टपुभा वी.(जामंग)💐*
      *गोधरा(पंचमहाल)*
*📱मो.नंबर=9724138925*

*🙏🏻🌹करणी समथॅ चारण🌹🙏🏻*

Post by Samra Gadhvi www.charansahitya.com