#नरपत_आशिया_वैतालिक_डीकरी
तुलसी आंगणद्वार ड़ीकरी,
पूजूं बारंबार डीकरी ।
कुम कुम पगली मम आंगणियै,
लिछमी रो अवतार डीकरी ।
हेत बादल़ी वरे बाप पर,
अनहद अनराधार डीकरी ।
जीवन दीपक राग थल़ी रो,
जिण पर मेघ मल्हार डीकरी ।
भाव प्रणव लयमय कविता जिम,
सरल,सहज सुकुमार डीकरी ।
कल़ी कोमल़ी पलै कोख तो,
क्यूं लागै है भार डीकरी ।
सुगनचिडी ज्यूं बा उड जासी,
मती कोख में मार डीकरी ।
बाल़ करै ने बल़ै बाप हित,
पति घरां घनसार डीकरी ।
नाना, नानी, ब्हैन,जमाई,
रिश्तां रो आधार डीकरी ।
भुआ!बणैनें लाड लडावै,
वहै भतीजां लार डीकरी ।
मासी बण मोदक खवरावै,
करै घणी मनुहार डीकरी ।
घरै बाप रै धी बण आवै,
बणै पति घर दार डीकरी ।
काली, लिछमी,सुरसत,रूपी,
दुरगा रो अवतार डीकरी ।
आंगण पल़ पल़ रहै चांदणौ,
पुनमियौ अंधार डीकरी ।
रमैं आंगणै नवलख चौसठ,
जिणरे घर परिवार डीकरी ।
"नरपत" रे घर बणै "ज्हानवी"
आई ! हरख अपार डीकरी ।
©नरपत वैतालिक
#डीकरी-बेटी
#घनसार-कपूर
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