मद पीवो मत मानवी,मिनख जूण अनमोल
जोबण, धन ,जस डूबसी,चौड़ी आसी पोल
चौड़ी आसी पोल ,बिकै घरबार जवानी
मूंछडल्या रो ताव, करा दे पाणी पाणी
बोतल बैरण जीव री,देसी इक दिन मार
कंठ लगै आ काळ ज्यूं,छोडै कोनी लार
छोडै कोनी लार, करै मिनखां री माटी
लेय निवाळा छीन, थाळियां पुरसी बाटी
पायो पीकर पाटवी,अद्धो पी धरराय
बोलत गटक्या बापजी,पड्या नाळियां माय
पड्यां नाळियां मांय, गंडकड़ा चाटै मूंडो
बेच आबरू खाय ,जगत में लागै भूंडो
जोरू का जेवर गया, बिक्यो टापरो आप
सुत रोवै तकदीर नैं,कर मन में संताप
कर मन में संताप, पढ़ाई छूट गयी है
बैरण दारू रांड, बालपण लूट गयी है
ज्यां घर करती नककटी, दारू दुश्मी वास
होणो निश्चित है बठै,मिनखपणै रो नाश
मिनखपणै रो नाश, बिचारो मन में पीड़ा
भूख कळह दुःख दीन,रचावै घर में क्रिडा
कदे जदे मनवार रै,प्यालै में के दोस
सीखणियां सीखै इयां,हो ज्यावै मदहोश
हो ज्यावै मदहोश, कदे न फेर बावड़ै
आदत के आधीन,पीड़ रै तपै तावड़ै
जे सुख चावो जीव को, रहज्यो भायां दूर
सो'रा रैसी टाबरया,सुख पासी सिंदूर
सुख पासी सिंदुर, घणैरा रंग धरा पै
पिवणियां पछताय,मरयां पाछै ही धापै
धन ,दारू,परनार का,कही बडेरा बात
तीन नशा त्यागो सदा, खाय जमीं अरु जात
खाय जमीं अरु जात, आत्मा आप झिंझोड़ो
सुण प्रांजल री बात, तजो करज्यो मत मोड़ो
प्रह्लाद सिंह कविया प्रांजल भवानिपुरा
Post by - samra gadhvi
जोबण, धन ,जस डूबसी,चौड़ी आसी पोल
चौड़ी आसी पोल ,बिकै घरबार जवानी
मूंछडल्या रो ताव, करा दे पाणी पाणी
बोतल बैरण जीव री,देसी इक दिन मार
कंठ लगै आ काळ ज्यूं,छोडै कोनी लार
छोडै कोनी लार, करै मिनखां री माटी
लेय निवाळा छीन, थाळियां पुरसी बाटी
पायो पीकर पाटवी,अद्धो पी धरराय
बोलत गटक्या बापजी,पड्या नाळियां माय
पड्यां नाळियां मांय, गंडकड़ा चाटै मूंडो
बेच आबरू खाय ,जगत में लागै भूंडो
जोरू का जेवर गया, बिक्यो टापरो आप
सुत रोवै तकदीर नैं,कर मन में संताप
कर मन में संताप, पढ़ाई छूट गयी है
बैरण दारू रांड, बालपण लूट गयी है
ज्यां घर करती नककटी, दारू दुश्मी वास
होणो निश्चित है बठै,मिनखपणै रो नाश
मिनखपणै रो नाश, बिचारो मन में पीड़ा
भूख कळह दुःख दीन,रचावै घर में क्रिडा
कदे जदे मनवार रै,प्यालै में के दोस
सीखणियां सीखै इयां,हो ज्यावै मदहोश
हो ज्यावै मदहोश, कदे न फेर बावड़ै
आदत के आधीन,पीड़ रै तपै तावड़ै
जे सुख चावो जीव को, रहज्यो भायां दूर
सो'रा रैसी टाबरया,सुख पासी सिंदूर
सुख पासी सिंदुर, घणैरा रंग धरा पै
पिवणियां पछताय,मरयां पाछै ही धापै
धन ,दारू,परनार का,कही बडेरा बात
तीन नशा त्यागो सदा, खाय जमीं अरु जात
खाय जमीं अरु जात, आत्मा आप झिंझोड़ो
सुण प्रांजल री बात, तजो करज्यो मत मोड़ो
प्रह्लाद सिंह कविया प्रांजल भवानिपुरा
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