*काल गती ना छू सकै, काट न सकै करोत*
*जो करणी मां को भजै, मार न पावै मौत।*
*खडग खप्र कर धारणी, सिंह चढी गरणाय.।*
*आवै चपला वेग सै, सेवग रै सुरराय. ।*
*गज काया सो कालजो, शेरां सरी दकाल.।*
*थर थर काँपै दुष्टडा,(जद) रूप धरै विकराल*
*घन गाजै जद दास पे, विपदा वाला आ'र*
*हाथ पकड मां देवती, पल में पार उतार.।*
*ड़ अर्थां सी जिंदगी, बिलकुल बेपरवाह*
*है सहरां की भटकनें, मात पकडले बांह*
*चलती है जब चारणी, होकर सिंह सवार.।*
*तीन लोक सजदा करै, दुनिया जय जयकार.।*
*छम छम बाजै घूघरा, चारण गावै गान*
*पाछै चालै मावडी, भैरव है अगवाण.।*
*जल में थल में कूप में, नभ में भी विस्तार.।*
*सांचे मन सै जो भजी, खडी मावडी आ' र*
*झगडु वाली झाझडी, थी हिचकोला खाय.।*
*हाथ बढायो भाविनी, दीन्ही पार लगाय. ।*
*ञ सा खाली हो गया, सुंदर आज शरीर*
*आन पडी है आवडा, तव भक्तन पर भीर*
*टसकण लाग्यो भूपडो, जपियो थारो जाप.।*
*बख्तावर कै टालियो, मोमिन रो अभिशाप ।*
*ठंडी निजरां राखज्यो, पातां पर हे मात. ।*
*थारी किरपा सूं सदा, पनपै चारण जात.।*
*डम डम बाजै डेरवा , बहै रास रसधार*
*मामों भैरूं है खड्यो, द्वारै पौरेदार*
*ढकियो अंबा सूर नै, लाखी लोवड ताण. ।*
*तात भ्रात सुत नै करया, जीवित सत रै पाण.।*
*णमोकार भव मोचनी, बीसहथी भुजलंब*
*सदा रहो निज सेवगां,डाढ्याली अवलंब*
*तरवारां जद खिंच गयी, भूप गंग रण खेत.।*
*सिंह होय माजी करयो, बैरयां रो आखेट.।*
*थम ज्यासी जद सांस भी, धडकन होसी मंद.।*
*तब तक मां तुझको भजूं,अतरो कर प्रबंध.।*
*दल दल मांही डोकरी , फंसियो थारो पात.।*
*ज्यूं निकलै त्यौं त्यौं धंसै, आय उबारो मात*
*धन नहीं मांगू मावडी, ना हीरां री खाण. ।*
*सुत नैं दीज्यो शंकरी, तव चरणां में ठाण. ।*
*नहीं दरद दुख पीर को, ना विपदा की बात*
*दरद एक क्यूं ना दिये, दर्शन मुझको मात*
*पवन वेग परमेश्वरी, उडत आव आकाश.।*
*बिरद पढ्यो मन में जगी, दर्शण वाली प्यास*
*फल दीज्यो उण दास नैं, जिणरा सांचा भाव. ।*
*राह दिखा ज्यो मेटके, भरमां का भटकाव ।*
*बल बुद्धि भगती बहुत, बगसो बीस भुजाह*
*बैर भीर भय भंजना, भार हरो भगताह*
*भव जल तारो भगवती, बीच भंवर मत छोड*
*तव महिमा में मावडी, मांडूं सबद करोड*
*मन में थारी मावडी, मूरत बसी अनूप. ।*
*रग रग में है राचियो, देवी थारो रूप. ।*
*यदा कदा कुछ भूल भी, करते भोलै बाल.।*
*मां ममता की खान है, हंसकर देती टाल.।*
*रज राखूं निज भाल पे, पा ल्यूं शीर्ष मूकाम ।*
*चरण पड्या जठ मात रा, कण कण बणग्यो धाम ।*
*लता पुष्प फल दास है, मात आप हो मूल.।*
*बनी आवरण ना दिये, चुभने हमको शूल ।*
*वन अगनी सी तेज जद, बढती जावै पीर.।*
*दुनिया भी बिसराय दे , मात बंधावै धीर.।*
*शंकर की पटराणी थे, भले सती अवतार.।*
*दर्शण देबा आवणूं, पडसी मां इकबार.*
*षट ऋतु बारह मास मैं, खड्यो रहूं लो द्वार*
*दर्शण जद तक ना हुवै, छोडूं कोनी लार ।*
*सत की पेडी सांवरी, राख्या म्हारी राह.*
*प्रांजल थारै पूत की, करज्यो मां परवाह. ।*
*हद से ज्यादा आपरो, मात म्हनैं विश्वास*
*साद सुणंता आवज्यो, आधे हेलै पास*
*क्षमा करो मां दास को, भगती करो कुबूल*
*तूफानों में है रही,( मम ) जीवन डोरी झूल*
*त्रास मेट तन की मेरे, मेट मनां संताप*
*मेरे तो जय करनला, ओंमकार सो जाप*
*ज्ञान नहीं गुणहीन हूँ , मैं माटी का ढेर*
*अटल भरोसो राख के , टेर रहा मां टेर।*
ड़ का अर्थ - कुछ नहीं
ञ का अर्थ - खाली
प्रहलाद सिंह कविया 'प्रांजल'
Post by - samra gadhvi
0 Comments
Post a Comment