|| अहल्या की कथा || || कर्ता मितेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||


*मितेशदान(सिंहढाय्च) कृत रामायण महागाथा माथी,,,,,*


*|| रचना;अहल्या की कथा||*

     *||छंद- मोतिदाम ||*

*||कर्ता:मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||*


*(प्रातःकाल राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिलापुरी के वन उपवन आदि देखने के लिये निकले। एक उपवन में उन्होंने एक निर्जन स्थान देखा।)*


ऋषि लछमन   सखा   रघुवीर,

वने फरताय     द्रसिय   कुटीर,

एकांत कुटीर न  मानव    होय,

न होव ऋषि नाह  गोचर कोइ,


कथे ऋषिराजन बोधत   राम,

ऋषि एक होवत गौतम   नाम,

सखी अरधांग अहल्याय साथ,

कुटीर मही रह बेयु      संगाथ,


अनुपस्थित होवत ऋषि गौतम,

नदी स्नान नित हुतोय    नियम,

तभै एक दिन पुरंदर      आवत,

गौतम  रूप तणो देह     धारत,


एकांत अहल्या कुटीर   मही,

गए इंद्र कामन मोह      चही,

करे याचना रूपवाण कु नार,

प्रणय समो मोह बेय  अपार,


अति अहंकार भर्यो  मनमाय,

अहल्याय रूप तणो भरमाय,

कहे मन्न होवत   इंद्र     प्रसन्न,

जुवे रूप वान  हुवेय     मगन्न,


मति भूल भान हुवे चक    चूर,

कहे इंद्रराजन  कामीय      तुर,

सभी कुळ लाजन छोड़   दियाह

तभी ध्रमको धुळमे दाट    लिया,


मिलाप समाप किनोय अमाप,

अमाप कु जानत दैवन    पाप,

पलायन होवत पातक     झट्ट,

ऋषि गौतमा रूप  कीनो कपट्ट


द्रसे परते फरताय         मुनि,

जुवे इंद्र जावत मग्न      धुनि,

धरि रूप दूजो सरीखोय  तन्न,

अति क्रोध भासत ऋषि नयन,


अति क्रोध में मन्न  होवे    अगन्न,

गति काल की क्रुद्ध खीजे गगन्न,

दिनों श्राप इन्द्राय को  नर   नाह,

नही नार होवत   मोह   न   चाह,


कुटीर गए गौतमा   क्रोध     धार,

अहल्याय काज न लज्जा  अपार,

मुनि क्रोध वश हुवे कु   न   दाख,

इति क्षण श्राप दिनों  बन     राख,


कीनी याचना खूब भान    भणी,

भीनी आंख में अश्रुय आव घणी,

दिसे पश्चाताप ऋषि सूज     देव,

हुतो उद्धार   सहस्त्र       युगेव,


*छप्पय*


अवतारी रघु आवत,तोड़न श्राप कठिन तुज,

अवतारी रघु आवत,पद छब राख चरण पूज,

अवतारी रघु आवत,धारण तन तुज पर  धर,

अवतारी रघु आवत,विधाता सत्य करण वर,

अयोधया से आविये, ,रघुवीर मुनि संगराम,

तन श्रापित दन तरिया,सावल रूप मीत श्याम


*(अहल्या का पश्चाताप  देखकर गौतम मुनि ने अहल्या से कहा,तू हजारों वर्ष तक केवल हवा पीकर कष्ट उठाती हुई यहाँ राख में पड़ी रहे। जब राम इस वन में प्रवेश करेंगे तभी उनकी कृपा से तेरा उद्धार होगा। तभी तू अपना पूर्व शरीर धारण करके मेरे पास आ सकेगी,यह कह कर गौतम ऋषि इस आश्रम को छोड़कर हिमालय पर जाकर तपस्या करने चले गये। )*


 *(विश्वा मित्र ने कथा के पश्चात कहा,,

हे राम! अब तुम आश्रम के अन्दर जाकर अहल्या का उद्धार करो।”)*


*(विश्वामित्र जी की आज्ञा पाकर वे दोनों भाई आश्रम के भीतर प्रविष्ट हुये।  जब अहल्या की दृष्टि राम पर पड़ी तो उनके पवित्र दर्शन पाकर वह एक बार फिर सुन्दर नारी के रूप में दिखाई देने लगी। ¥ तत्पश्चात् उससे उचित आदर सत्कार ग्रहण कर वे मुनिराज के साथ पुनः मिथिला पुरी को लौट आये।)*


(वाल्मीकि रामायण के इंकावनवें सर्ग के श्‍लोक क्रंमाक 16 के अनुसारः)

  || - सा हि गौतमवाक्येन दुनिरीक्ष्या बभूव ह।

त्रयाणामपि लोकानां यावद् रामस्य दर्शनम्।

शापस्यान्तमुपागम्य तेषां दर्शनमागता-॥


(अर्थात- .रामचन्द्र के द्वारा देखे जाने के पूर्व, गौतम के शाप के कारण अहल्या का दर्शन तीनों लोकों के किसी भी प्राणी को होना दुर्लभ था। राम का दर्शन मिल जाने से जब उनके शाप का अन्त हो गया, तब वे उन सबको दिखाई देने लगीं)


*🙏~~~मितेशदान(सिंहढाय्च)~~~🙏*


*कवि मीत*