राग:श्यामने स्वपना एवा आवे
मढळे प्रगट्या सोनल आई ,
धन धन चारण कुळ नी कमाई
-मढळे प्रगट्या,,(दोढ)
चारणो करणी चुकवा लाग्या ,
मृत्यु लोक नी मांइ
अमर लोक थी उतयॉ अंबीका
सोरठधरा सुखदाय
-मढळे प्रगट्या,,,(१)
आई राणबाई नां उदर वस्या
जेनी केवी भाग्य कमाई
हरखेथी माँ हमीरनां घरे
आव्या जानल(सोनल)आई
-मढळे प्रगट्या,,,(२)
पासे बेसाडी पंथडा चिंध्यां
बिरज साचुं बताइ
रमाडयां जमाडयां खोळले खेलव्या
अढारे वरणने आई
-मढळे प्रगट्या,,, (३)
अेकावन वरसे अमर लोक मां
(माँ)सोनल गीया छे सिधाई
अमर थीया छे आ अवनी मां
सौ ने गयुं समझाई
-मढळे प्रगट्या (४)
अंतरिक्षमांथी नजरु अमीनी
(आई)सोनल राखो सदाई
कांयो कहे माँ करुणा करजो
तारा बाळको उपर बाई
-मढळे प्रगट्या (५)
पुस्तक:-तुंबेलवाणी
रचना:-कांयाभाई गढवी-बेह(बाराळी)
टाईप:-वेरसी गढवी(भाटीया)
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